भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023 कि धारा:- 127
(सदोष परिरोध)
(1) जो कोई किसी व्यक्ति का इस प्रकार सदोष अवरोध करता है कि उस व्यक्ति को निश्चित परिसीमा से परे जाने से निवारित कर दे, वह उस व्यक्ति का "सदोष परिरोध" कहा जाता है।
उदाहरण:- (क) राहुल को दीवार से घिरे हुए स्थान में प्रवेश कराकर रोहित उसमें ताला लगा देता है। इस प्रकार राहुल दीवार की परिसीमा से परे किसी भी दिशा में नहीं जा सकता। रोहित ने राहुल का सदोष परिरोध किया है।
(ख) राहुल एक भवन के बाहर जाने के द्वारों पर बन्दूकधारी मनुष्यों को बैठा देता है और रोहित से कह देता है कि यदि रोहित भवन के बाहर जाने का प्रयत्न करेगा, तो वे रोहित को गोली मार देगा। राहुल ने रोहित का सदोष परिरोध किया है।
(2) जो कोई किसी व्यक्ति का सदोष परिरोध करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच हजार रुपए तक का हो सकेगा, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
(3) जो कोई किसी व्यक्ति का सदोष परिरोध तीन या अधिक दिनों के लिए करेगा, वह दोनों में से, किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो दस हजार रुपए तक का हो सकेगा या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
(4) जो कोई किसी व्यक्ति का सदोष परिरोध दस या अधिक दिनों के लिए करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से जो दस हजार से अन्यून का हो सकेगा, के लिए भी दायी होगा।
(5) जो कोई यह जानते हुए किसी व्यक्ति को सदोष परिरोध में रखेगा कि उस व्यक्ति को छोड़ने के लिए रिट सम्यक् रूप से निकल चुकी है। वह किसी अवधि के उस कारावास के अतिरिक्त, जिससे कि वह इस अध्याय की किसी अन्य धारा के अधीन दण्डनीय हो, के अतिरिक्त दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने के लिए भी दायी होगा।
(6) जो कोई किसी व्यक्ति का सदोष परिरोध इस प्रकार करेगा जिससे यह आशय प्रतीत होता हो कि ऐसे परिरुद्ध व्यक्ति से हितबद्ध किसी व्यक्ति को या किसी लोक सेवक को ऐसे व्यक्ति के परिरोध की जानकारी न होने पाए या एतस्मिन्पूर्व वर्णित किसी ऐसे व्यक्ति या लोक सेवक को, ऐसे परिरोध के स्थान की जानकारी न होने पाए या उसका पता वह न चला पाए, वह उस दण्ड के अतिरिक्त जिसके लिए वह ऐसे सदोष परिरोध के लिए दण्डनीय हो, दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा, और जुर्माने के लिए भी दायी होगा।
(7) जो कोई किसी व्यक्ति का सदोष परिरोध इस प्रयोजन से करेगा कि उस परिरुद्ध व्यक्ति से, या उससे हितबद्ध किसी व्यक्ति से, कोई संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति उद्दापित की जाए, अथवा उस परिरुद्ध व्यक्ति को या उससे हितबद्ध किसी व्यक्ति को, कोई ऐसी अवैध बात करने के लिए, या कोई ऐसी जानकारी देने के लिए जिससे अपराध का किया जाना सुकर हो जाए, मजबूर किया जाए, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने के लिए भी, दायी होगा।
(8) जो कोई किसी व्यक्ति का सदोष परिरोध इस प्रयोजन से करेगा, कि उस परिरुद्ध व्यक्ति से. या उससे हितबद्ध किसी व्यक्ति से, कोई संस्वीकृति या प्रयोजन से करेगा जिससे किसी अपराध या अवचार का पता चल सके, उद्दापित की जाए, या वह परिरुद्ध व्यक्ति या उससे हितबद्ध कोई व्यक्ति मजबूर किया जाए कि वह किसी संपत्ति या किसी मूल्यवान प्रतिभूति को प्रत्यावर्तित करे या करवाए या किसी दावे या मांग की तुष्टि करे या कोई ऐसी जानकारी दे जिससे किसी संपत्ति या किसी मूल्यवान प्रतिभूति का प्रत्यावर्तन कराया जा सके, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने के लिए भी दायी होगा।
अपराध का वर्गीकरण
उपधारा (2):- सजा:- 1 वर्ष के लिए कारावास या 5,000 रुपए का जुर्माना या दोनों
अपराध:- संज्ञेय
जमानत:- जमानतीय
विचारणीय:- कोई भी मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय
शमनीय:- शमनीय का मतलब है, ऐसा अपराध जिसके लिए समझौता किया जा सकता है।
उपधारा (3):- सजा:- 3 वर्ष के लिए कारावास या 10,000 रुपए का जुर्माना या दोनों
अपराध:- संज्ञेय
जमानत:- जमानतीय
विचारणीय:- कोई भी मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय
शमनीय:- शमनीय का मतलब है, ऐसा अपराध जिसके लिए समझौता किया जा सकता है।
उपधारा (4):- सजा:- 5 वर्ष के लिए कारावास या 10,000 रुपए का जुर्माना या दोनों
अपराध:- संज्ञेय
जमानत:- अजमानतीय
विचारणीय:- प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय
शमनीय:- शमनीय का मतलब है, ऐसा अपराध जिसके लिए समझौता किया जा सकता है।
उपधारा (5):- सजा:- किसी अन्य धारा के अधीन किसी अवधि के लिए कारावास के अतिरिक्त, 2 वर्ष के लिए कारावास और जुर्माना
अपराध:- संज्ञेय
जमानत:- जमानतीय
विचारणीय:- प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय
अशमनीय:- अशमनीय का मतलब है, ऐसा अपराध जिसके लिए समझौता नहीं किया जा सकता.
उपधारा (6):- सजा:- उस दण्ड के अतिरिक्त, जिसके लिए वह दायी हो, 3 वर्ष का कारावास और जुर्माना
अपराध:- संज्ञेय
जमानत:- जमानतीय
विचारणीय:- प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय
शमनीय:- शमनीय का मतलब है, ऐसा अपराध जिसके लिए समझौता किया जा सकता.हैं।
उपधारा (7):- सजा:- 3 वर्ष के लिए कारावास और जुर्माना
अपराध:- संज्ञेय
जमानत:- जमानतीय
विचारणीय:- कोई भी मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय
अशमनीय:- अशमनीय का मतलब है, ऐसा अपराध जिसके लिए समझौता नहीं किया जा सकता.
उपधारा (8):- सजा:- 3 वर्ष के लिए कारावास और जुर्माना
अपराध:- संज्ञेय
जमानत:- जमानतीय
विचारणीय:- कोई भी मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय
अशमनीय:- अशमनीय का मतलब है, ऐसा अपराध जिसके लिए समझौता नहीं किया जा सकता.