भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023 की धारा - 41
(कब संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार मृत्यु कारित करने तक का होता है)
संपत्ति की प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार का विस्तार, धारा 37 में वर्णित निर्बन्धनों के अध्यधीन दोषकर्ता की मृत्यु या अन्य अपहानि स्वेच्छया कारित करने तक का है, यदि वह अपराध जिसके किए जाने के, या किए जाने के प्रयत्न के कारण उस अधिकार के प्रयोग का अवसर आता है, इसके पश्चात् प्रगणित भांतियों में से किसी भी भांति का है, अर्थात् -
(क) लूट,
(ख) रात्रौ गृह-भेदन,
(ग) अग्नि या किसी विस्फोटक पदार्थ द्वारा रिष्टि जो किसी ऐसे निर्माण, तम्बू या जलयान को की गई है, जो मानव आवास के रूप में या संपत्ति की अभिरक्षा के स्थान के रूप में उपयोग में लाया जाता है,
(घ) चोरी, रिष्टि या गृह-अतिचार, जो ऐसी परिस्थितियों में किया गया है, जिनसे युक्तियुक्त रूप से यह आशंका कारित हो कि यदि प्राइवेट प्रतिरक्षा के ऐसे अधिकार का प्रयोग न किया गया तो परिणाम मृत्यु या घोर उपहति होगा।
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(IPC) की धारा 103 को (BNS) की धारा 41 में बदल दिया गया है। |