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धारा:- 120 (संस्वीकृति उद्दापित करने या विवश करके संपत्ति का प्रत्यावर्तन कराने के लिए स्वेच्छया उपहति या घोर उपहति कारित करना)

धारा:- 120 (संस्वीकृति उद्दापित करने या विवश करके संपत्ति का प्रत्यावर्तन कराने के लिए स्वेच्छया उपहति या घोर उपहति कारित करना)
काल्पनिक चित्र

भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023 कि धारा:- 120

(संस्वीकृति उद्दापित करने या विवश करके संपत्ति का प्रत्यावर्तन कराने के लिए स्वेच्छया उपहति या घोर उपहति कारित करना)

 (1) जो कोई इस प्रयोजन से स्वेच्छया उपहति कारित करेगा कि उपहत व्यक्ति से या उससे हितबद्ध किसी व्यक्ति से कोई संस्वीकृति या कोई जानकारी, जिससे किसी अपराध या अवचार का पता चल सके, उद्दापित की जाए अथवा उपहत व्यक्ति या उससे हितबद्ध व्यक्ति को मजबूर किया जाए कि वह कोई संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति प्रत्यावर्तित करे, या करवाए, या किसी दावे या मांग की पुष्टि, या ऐसी जानकारी दे, जिससे किसी संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति का प्रत्यावर्तन कराया जा सके, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने के लिए भी दायी होगा।

उदाहरण:- (क) मोहन, जो एक पुलिस अधिकारी है, राजू से यह संस्वीकृति कराने के लिए कि उसने अपराध किया है उसे उत्प्रेरित करने के लिए यातना देता है, मोहन इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है।

(ख) रहीम जो एक पुलिस अधिकारी, है, अब्दुल से यह पता लगाने के लिए कि अमुक चुराई हुई संपत्ति कहां रखी है उत्प्रेरित करने के लिए उसे यातना देता है। रहीम इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है।

(ग) अब्दुल, जो एक राजस्व अधिकारी, राजस्व की वह बकाया, जो महेश द्वारा शोध्य है, देने के लिए महेश को विवश करने के लिए उसे यातना देता है। अब्दुल इस धारा के अधीन अपराध का दोषी है।

(2) जो कोई उपधारा (1) में निर्दिष्ट किसी प्रयोजन के लिए स्वेच्छया घोर उपहति कारित करता है, दोनों में से किसी भांति के कारावास से दण्डनीय होगा, जिसकी अवधि दस वर्ष तक हो सकेगी और जुर्माने के लिए भी दायी होगा।


अपराध का वर्गीकरण

उपधारा (1):-  सजा:- 7 वर्ष के लिए कारावास और जुर्माना

अपराध:- संज्ञेय 

जमानत:- जमानतीय

विचारणीय:- प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय

अशमनीय:- समझौता करने योग्य नहीं



उपधारा (2):-  सजा:- 10 वर्ष के लिए कारावास और जुर्माना

अपराध:- संज्ञेय 

जमानत:- अजमानतीय

विचारणीय:- सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय 

अशमनीय:- समझौता करने योग्य नहीं







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